भारत छोड़ो आन्दोलन bharat chhodo andolan

 भारत छोड़ो आन्दोलन

"भारत छोड़ो आन्दोलन" भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था। यह आन्दोलन 1942 में आयोजित किया गया था और इसे "भारत छोड़ो" के नाम से भी जाना जाता है। इस आन्दोलन के द्वारा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नया अध्याय शुरू हुआ था।

भारत छोड़ो आन्दोलन के मुख्य आदेशक थे महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, अभ्यंकर बाबू और जयप्रकाश नारायण। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश सत्ता से आजादी पाना था। यह आन्दोलन अविराम और अहिंसा के आधार पर चलाया गया था।

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इस आन्दोलन के दौरान अनेक भारतीय नेताओं को गिरफ्तार किया गया था और वे उन्हें कठोरता से सजा दी गई थी। इस आन्दोलन के दौरान भारत में बड़ी हिंसाओं और उपद्रव हुए थे। इस आन्दोलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता को लेकर चर्चाओं को शुरू किया था और इसके बाद 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त की ।


भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत (Quit India Movement Start)

"भारत छोड़ो आन्दोलन" की शुरुआत 1942 में हुई थी। इस आन्दोलन के आधार पर एक आदेश प्रकाशित किया गया था, जिसमें ब्रिटिश सरकार से मांगा गया था कि वह भारत से जल्द से जल्द अपनी सत्ता वापस ले जाए और भारत को स्वतंत्रता दे दे। इस आदेश के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस आन्दोलन को आधार बनाकर स्वतंत्रता संग्राम शुरू कर दिया।

महात्मा गांधी ने भी इस आन्दोलन के समर्थन में अपने अहिंसा के सिद्धांतों पर विश्वास जताया और इस आन्दोलन को "भारत छोड़ो" के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य था भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ना था और इसके लिए ब्रिटिश सरकार से सत्ता को छोड़ने की मांग की गई थी।

इस आन्दोलन के दौरान भारत में बड़ी हिंसा भी हुई थी और बहुत से भारतीय नेता गिरफ्तार किए गए थे। इस आन्दोलन के दौरान भारत के विभिन्न हिस्सों में बैठकें, प्रदर्शन और अहिंसक सत्याग्रह आयोजित किए गए थे।


द्वितीय विश्वयुद्ध और भारत की सहभागिता (World War 2 and India)

द्वितीय विश्वयुद्ध 1939 से 1945 तक चला था और इस युद्ध में विभिन्न देशों ने भाग लिया था, भारत भी उन देशों में से एक था जिन्होंने इस युद्ध में सहभागिता दर्ज की थी। इस युद्ध में भारत की सहभागिता कई तरीकों से थी, जिसमें भारत के सैन्य बलों के द्वारा भी सहयोग किया गया था।

द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारम्भिक दौर में भारत ने ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग किया था, जिसमें भारतीय सेना के सैनिकों को भारत के बाहर युद्ध क्षेत्रों में भेजा गया था। भारत ने विभिन्न देशों में अपने सैनिकों के जरिए सहयोग किया, जिसमें सम्मानित थीं अफ्रीका, यूरोप और एशिया के कई देश।

भारत की सहभागिता के अलावा, इस युद्ध के दौरान भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को भी सुधारने के लिए कई उपाय अपनाए, जिसमें वस्तु विनिमय, उत्पादन और वित्तीय सुधार शामिल थे।


क्रिप्स मिशन (Cripps Mission)

क्रिप्स मिशन (Cripps Mission) ब्रिटिश राज के भारत से संबंधित एक महत्वपूर्ण घटना थी जो 1942 में ब्रिटिश वाइसराय ऑफ इंडिया लॉर्ड लिनलिथगो डॉउनिंग से पहले अध्यक्ष ऑफ द ब्रिटिश कैबिनेट सिर स्टाफर्ड क्रिप्स द्वारा भेजा गया था।

यह मिशन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आयोजित किया गया था जब भारत नेताओं का एक समूह ब्रिटिश सरकार से भेंट करने लंदन पहुंचा था। मिशन के मुख्य उद्देश्य भारत के स्वतंत्रता के लिए एक नया राजनीतिक ढांचा तैयार करना था।

लेकिन मिशन को असफल ठहराया गया क्योंकि भारतीय नेताओं द्वारा उसमें पेश की गई प्रस्तावना अस्पष्ट और अपर्याप्त मानी गई। इस प्रस्तावना में ब्रिटिश शासन की सीमाओं के भीतर भारत के लोगों को आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक अधिकारों के लिए एक फेडरल संरचना प्रदान की जाती थी, लेकिन यह भारतीय नेताओं द्वारा अस्वीकार किया गया था।

भारत छोड़ो आन्दोलन के विशेष प्रभाव (Quit India Movement Special Effects)

भारत छोड़ो आन्दोलन, 1942 में भारत के स्वाधीनता के लिए एक अहम आन्दोलन था जो गांधीजी द्वारा शुरू किया गया था। इस आन्दोलन के कुछ विशेष प्रभाव निम्नलिखित हैं:

  • स्वाधीनता की मांग: भारत छोड़ो आन्दोलन भारत की स्वाधीनता की मांग को बढ़ावा देने का एक अहम माध्यम था। इस आन्दोलन के द्वारा भारतीय जनता ने अपने अधिकारों के लिए अधिक सक्रिय ढंग से लड़ाई लड़ना शुरू कर दिया।

  • ब्रिटिश सरकार की अत्याचारों का प्रभाव: भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के प्रति अत्याचार किए, जिससे भारतीय जनता में और भी उत्तेजना बढ़ी।

  • जनता के आर्थिक आंदोलन: भारत छोड़ो आन्दोलन ने भारतीय जनता के आर्थिक आंदोलन को बढ़ावा दिया। इस आन्दोलन के दौरान भारतीय जनता ने आर्थिक व्यवस्था पर ध्यान दिया और स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा दिया।

स्वदेशी आंदोलन

स्वदेशी आंदोलन भारत में अंग्रेजों के शासन के विरुद्ध एक आंदोलन था, जो 1905 से 1947 तक चला। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारतीय उत्पादों का प्रचार और उनकी खरीदारी के माध्यम से अंग्रेजों के शासन से मुक्ति प्राप्त करना था। इस आंदोलन के कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • स्वदेशी उत्पादों का उत्पादन: स्वदेशी आंदोलन के दौरान भारतीय उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा दिया गया था। लोगों को उनके देश के उत्पादों का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया गया था।
  • अंग्रेजों के उत्पादों का विरोध: स्वदेशी आंदोलन के द्वारा लोगों को अंग्रेजों के उत्पादों का विरोध करने के लिए प्रेरित किया गया था।
  • स्वदेशी वस्तुओं की खरीदारी: स्वदेशी आंदोलन के द्वारा लोगों को स्वदेशी वस्तुओं की खरीदारी के लिए प्रेरित किया गया था। इससे अंग्रेजों के उत्पादों की खरीदारी रोकी जाती थी और स्वदेशी उत्पादों का उत्पादन बढ़ता था

भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध

भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध दो तरह से किया गया था। पहले, ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन के नेताओं को गिरफ्तार करवाया और उन्हें जेल भेजा। उन्होंने आंदोलन को एक जानलेवा और अवैध आंदोलन के रूप में देखा।

दूसरे, आंदोलन के विरोध में विभिन्न समूहों ने भी हिस्सा लिया। इनमें से कुछ लोगों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विरोधी होने का आरोप लगाया गया था। अन्य लोगों ने भी यह माना कि आंदोलन शांतिपूर्ण नहीं है और यह विविध प्रकार के अपराधों का केंद्र बन रहा है।

इसके अलावा, अंग्रेजों ने आंदोलन को तोड़ने के लिए कई तरह की तकनीकें भी अपनाईं। उन्होंने आंदोलन को अपमानित किया, उसे कमजोर करने के लिए अलग-अलग समूहों में विभाजित किया गया, लोगों को भ्रमित किया गया और आंदोलन के नेताओं की बेइज्जती की गई।

कुल मिलाकर, भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध बहुत सारे लोगों द्वारा किया गया था।


स्थानीय लोगों का आक्रोश (Local Violence)

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, कुछ स्थानों पर स्थानीय लोगों के आक्रोश के कारण हिंसा की घटनाएं देखी गई थीं। ये हिंसापूर्ण घटनाएं बारंबार होती रहीं और अंततः इन्हें रोकने के लिए आंदोलन के नेताओं ने आंदोलन को शांतिपूर्ण बनाने के लिए कड़ी मेहनत की।

हिंसा की इन घटनाओं में सबसे अधिक ताकतवर थे ब्रिटिश शासन के समर्थक और समाज में बटोरे गए द्वेषपूर्ण भावों के कारण उन लोगों को लगा कि वे आंदोलन के खिलाफ उठ सकते हैं। इन घटनाओं के दौरान अनेक दुष्प्रेरित लोग शांतिपूर्ण नहीं रहे और वे स्थानीय विवादों के बारे में भी संघर्ष करने लगे।

इन हिंसापूर्ण घटनाओं के बावजूद, आंदोलन के बहुत से नेता ने सशक्त और शांतिपूर्ण प्रतिक्रिया दी और यह सुनिश्चित किया कि वे स्थानीय लोगों को इन्हें रोकने के लिए प्रेरित करते हैं।


भारत छोड़ो आन्दोलन की समाप्ति (Quit India Movement)


भारत छोड़ो आंदोलन 1942 के अगस्त में आरंभ हुआ था और उसका मुख्य उद्देश्य था कि भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को खत्म कर दिया जाए। इस आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने सभी नेताओं को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ उठने की अपील की थी।

यह आंदोलन अधिकतर स्थानों पर शांतिपूर्ण रहा, लेकिन कुछ स्थानों पर इसके दौरान हिंसा भी देखी गई थी। ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन के विरोध में कठोर कार्रवाई की और कई राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।

इस आंदोलन के दौरान भारत के विभिन्न हिस्सों में जनता के असहमति का एक संकेत था जो ब्रिटिश सरकार को अंततः भारत से अपनी सत्ता वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया था। इस आंदोलन का परिणाम था कि भारत स्वतंत्रता की ओर अधिक गति से बढ़ने लगा और अंततः 1947 में भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया।






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