सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil disobedience movement in Hindi)
सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil disobedience movement in Hindi)
सविनय अवज्ञा आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस आंदोलन का आयोजन महात्मा गांधी द्वारा किया गया था जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ था। इस आंदोलन का उद्देश्य था कि भारतीय राज्य को स्वतंत्रता दिलाने के लिए ब्रिटिश शासन को असहयोग का संदेश दिया जाए।
(Civil disobedience movement in Hindi) |
सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ 12 मार्च 1930 को दिल्ली में किया गया था। महात्मा गांधी ने दंड विरोधी आन्दोलन के तहत नमक का अवमानना किया था। उन्होंने नमक की विधि का पालन न करने का अपना विरोध दर्शाया था। इस आंदोलन में लाखों लोग शामिल हुए थे और उनमें से कई लोग जेल भी भेजे गए थे।
सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण टर्निंग प्वाइंट का काम किया था। इस आंदोलन का असफल होने के बाद, महात्मा गांधी ने दो अन्य अहिंसक आंदोलन, खिलाफत आंदोलन और बंदी आंदोलन शुरू किए थे
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई?
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी द्वारा 12 मार्च, 1930 को की गई थी। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण मोड़ था जो ब्रिटिश शासन के विरोध में था।
महात्मा गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत नमक के अवमानना के माध्यम से की गई थी। उन्होंने नमक के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए उच्च शुल्कों के विरोध में कार्यवाही की घोषणा की थी। नमक को अपनी अस्तव्यस्त विधि से बनाने और इसे खाने के लिए ब्रिटिश सरकार के तर्कों के विरोध में महात्मा गांधी ने समस्त देशवासियों को आमंत्रित किया था।
इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने लगभग 78 लाख भारतीयों को जोड़ा था, जो अपने घरों से निकलकर नमक का अवमानना करने लगे थे। इस आंदोलन के बाद, कई भारतीय राज्यों में समस्त नमक आंदोलन शुरू हो गए थे और ब्रिटिश सरकार ने अंततः नमक के उच्च शुल्कों को हटा दिया था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन आंदोलन के प्रभाव ?
सविनय अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस आंदोलन का प्रभाव भारत में भारी था और यह ब्रिटिश सरकार के सत्ता पर असर डाला। इस आंदोलन के प्रमुख प्रभावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
लोकप्रियता: सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय जनता के बीच एक सशक्त लोकप्रियता प्राप्त की थी। महात्मा गांधी ने इस आंदोलन के माध्यम से अपनी गैरहिंसक आंदोलन प्रणाली का उपयोग करके भारतीय जनता के बीच अपनी प्रतिष्ठा को मजबूत किया।
देश के संघर्ष को संज्ञान में लेना: सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में स्थान पाया। इस आंदोलन से पूरे देश में नागरिक सत्याग्रह और अन्य संघर्षों का आधार तैयार हुआ।
देश के संघर्ष को संज्ञान में लेना: शासन पर दबाव डालना : सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय जनता को एक सामाजिक और आर्थिक विरोध का सामना करना पड़ा जो उन्हें विदेशी शासन के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित करता था। इस आंदोलन के माध्यम से भारतीय जनता ने ब्रिटिश सरकार को उनकी अन्यायपूर्ण नीतियों और कठोरताओं के खिलाफ स्पष्ट रूप से लड़ाई दी।
इस आंदोलन के माध्यम से महात्मा गांधी ने सत्याग्रह की एक नई विधि का आविष्कार किया जो बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने एक कमिटी बनाई जिसने भारतीय संघर्ष के बारे में सुनवाई की। इससे ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक मार्ग तैयार किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद, भारतीय राजनीति में भी कुछ बदलाव हुए जो बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत बनाने में मददगार साबित हुए।
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ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया
सविनय अवज्ञा आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को बड़ी मुश्किल में डाल दिया था। आंदोलन के अंतर्गत लाखों लोगों ने जेल भरने का सामना किया था, शिक्षक और वकील जैसे वरिष्ठ नेता भी जेल में थे। जेल भरने वालों में महात्मा गांधी भी थे जो नीतिगत रूप से आंदोलन के अग्रदूत थे।
ब्रिटिश सरकार ने पहले तो आंदोलन के समर्थकों को धमकियों और दंडों के जरिए रोकने की कोशिश की। बाद में उन्होंने ब्रिटिश संसद में भारत के लोगों के नियमित शासन के लिए संकल्प पास किया।
इसके अलावा, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय राजनीतिक नेताओं से बातचीत की और कुछ सुधारों को लागू किया, जैसे कि सिविल सेवा परीक्षाओं में भारतीय नागरिकों को भी भाग लेने की अनुमति देना। यह सब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत बनाने में मददगार साबित हुआ।
कराची सत्र सविनय अवज्ञा आंदोलन
कराची सत्र सविनय अवज्ञा आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो 1946 में आयोजित की गई थी। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश सरकार को भारत के अधिकारों को समझाना और भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करना था।
इस आंदोलन का नाम "सत्र सविनय अवज्ञा आंदोलन" था क्योंकि इसमें कराची सत्र के सदस्यों ने सत्र की विधि के अनुसार अपने आंदोलन को आयोजित किया था। यह आंदोलन भारत में अन्य कई सत्याग्रहों की तरह अहिंसा पर आधारित था।
इस आंदोलन में करीब 250 से अधिक सत्याग्रही थे, जिनमें से अधिकतर शिक्षक थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अपना विरोध प्रदर्शित किया था। इस आंदोलन के दौरान सत्याग्रही निरंतर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपने विरोध का अभिव्यक्त किया था।
यह आंदोलन कुछ समय तक चलता रहा, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने इसकी मांगों को समझने के लिए एक आयोग बनाया था।
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