पृथ्वी की आंतरिक संरचना Earth's internal structure
पृथ्वी की आंतरिक संरचना
पृथ्वी एक ग्रह है जिसका आकार लगभग 12,742 किलोमीटर है और इसकी आयताकार त्रिज्या लगभग 40,075 किलोमीटर है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना तीन प्रमुख भागों से मिलकर बनती है - कोर, मंडलीय वस्तु तथा जीवमंडल।
Earth's internal structure |
कोर: पृथ्वी का कोर उसके अंतर्भाग को दर्शाता है जो अंदर से सबसे गर्म होता है। यह तापमान लगभग 6,000 °C तक पहुंचता है। कोर का अधिकांश हिस्सा आयरन तथा निकेल से बना होता है। कोर का मोटाई लगभग 3,400 किलोमीटर है।
मंडलीय वस्तु: कोर के ऊपर मंडलीय वस्तु स्थित होती है, जिसे मंडल कहा जाता है। यह वस्तु आयरन, सिलिकेट, मैग्नीशियम तथा अन्य तत्त्वों से बनी होती है और उसका मोटाई लगभग 2,900 किलोमीटर होता है।
जीवमंडल: मंडलीय वस्तु के ऊपर फिर से एक वेंश तथा क्रुस्ट अवस्थित होती है जिसे जीवमंडल कहा जाता है। यह भूमिगत चट्टानें, मिट्टी तथा जल का संगम होता है।
आंतरिक संरचना निम्नलिखित ढंग से है:
त्रिभुजीय मंडलीय कक्षा: पृथ्वी के अंदर एक त्रिभुजीय मंडलीय कक्षा होती है जो पृथ्वी की ध्रुवीय अक्ष के चारों ओर घुमती है।
आयाम: पृथ्वी का आयाम लगभग 12,742 किलोमीटर है।
भौतिक स्तर: पृथ्वी का भौतिक स्तर तीन परतों में विभाजित होता है - तत्कालीन त्रुटि, मंडलीय स्तर और ज्वालामुखीय स्तर।
धातुओं का संरचना: पृथ्वी की आंतरिक संरचना में निकल, आयरन, सिलिकेट आदि धातुओं की विभिन्न परतें होती हैं।
विभिन्न परतों का संरचना: पृथ्वी की विभिन्न परतों में आधुनिक भौतिक विज्ञान द्वारा अलग-अलग परतों का वर्णन किया गया है। यह परतें बहुत गहन होती हैं और उनमें बहुत सारे अभिकल्प होते हैं।
इस तरह, पृथ्वी की आंतरिक संरचना बहुत विस्तृत और गहन होती है।
पृथ्वी की संरचना का विस्तृत स्वरूप :
(1) महाद्वीपीय भूपर्पटी
महाद्वीपीय भूपर्पटी विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है जिसमें सभी पृथ्वी के महाद्वीपों का सम्मिलित होता है। यह भूपर्पटी अंतर्ग्रहीय दृष्टि से नहीं देखी जा सकती है।
महाद्वीपीय भूपर्पटी का क्षेत्रफल लगभग 510 मिलियन वर्ग किलोमीटर है। इसमें आइसलैंड, ग्रीनलैंड, मध्य और दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और उनके आस-पास के छोटे द्वीप सम्मिलित हैं।
महाद्वीपीय भूपर्पटी अपने भौतिक विशेषताओं, विभिन्न जीव जंतुओं, प्राचीन इतिहास और विविध संस्कृतियों के लिए विख्यात है। यह विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला महाद्वीप है और सबसे बड़े देश चीन और भारत को अपने आंचल में समेटे हुए है।
(2) महासागरीय भूपर्पटी
महासागरीय भूपर्पटी दुनिया का वह क्षेत्र होता है जो महासागरों द्वारा घेरा गया होता है। यह भूपर्पटी विश्व के आधे से अधिक क्षेत्र को आवरण करती है।
महासागरीय भूपर्पटी के दो प्रमुख हिस्से होते हैं - पश्चिमी और पूर्वी हेमिस्फियर। पश्चिमी हेमिस्फियर में अफ्रीका, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप, दक्षिण अमेरिका के एक छोटे हिस्से और उनके आसपास के छोटे द्वीप सम्मिलित होते हैं। पूर्वी हेमिस्फियर में उत्तर अमेरिका का एक बड़ा हिस्सा, दक्षिणी अमेरिका के एक छोटे हिस्से, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और उनके आसपास के छोटे द्वीप होते हैं।
महासागरीय भूपर्पटी के अंतर्गत भूमध्यसागर, अटलांटिक महासागर, भूमध्य भारतीय महासागर, भूमध्य प्रशांत महासागर, अंटार्कटिक महासागर, उत्तरी ध्रुवीय महासागर और दक्षिणी ध्रुवीय महासागर शामिल होते हैं।
(3) बाहरी मैंटल
बाहरी मैंटल धरती के मंगलिक आवर्त के नीचे स्थित भू-तत्वों के एक भाग होता है। इसका अर्थ है कि यह धरती के केंद्र से कुछ दूरी पर स्थित होता है।
धरती का मंगलिक आवर्त उत्तर ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक फैला हुआ है। यह आवर्त अपने भीतर गर्म होता है जिससे धरती के तापमान का आधा भाग इसी स्रोत से आता है। बाहरी मैंटल धरती के अन्दर स्थित मैंटल के विपरीत होता है जो धरती के केंद्र के आसपास स्थित होता है।
बाहरी मैंटल का अधिकतम गहराई लगभग 2,900 किलोमीटर होता है और इसका तापमान लगभग 500 से 900 डिग्री सेल्सियस होता है। बाहरी मैंटल के भौतिक गुणधर्म और संरचना का अध्ययन जीवाश्म खनिजों की खोज के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।
(4) तप्त बिन्दु (हॉट स्पॉट)
तप्त बिंदु एक ऐसा स्थान होता है जो धरती के मैंटल के अंदर अत्यधिक तापमान वाला होता है और इससे मागमा उत्पन्न होता है। इसे हॉट स्पॉट भी कहा जाता है।
तप्त बिंदु के कारण मागमा जमा होता है जो फिर से जमीन के माध्यम से बाहर आ सकता है या फिर जब यह अंदरीभूत गतिशीलता को प्राप्त करता है तो उससे विभिन्न प्रकार के ज्वालामुखियों का उत्पादन होता है। इस प्रकार के ज्वालामुखियों से निकलने वाली विभिन्न वस्तुओं जैसे खनिज, धातु, और आयरन आदि का उत्पादन होता है।
तप्त बिंदु विभिन्न कारणों से उत्पन्न हो सकते हैं जैसे चुंबकीय तरंगों का दूसरे स्थानों से अलग होना, मैंटल की गतिशीलता के कारण और प्लेट टेक्टोनिक्स द्वारा घुमावदार जोड़ों के कारण।
(5) भीतरी मैंटल
भौतिक विज्ञान में मैंटल धरती के अंदरीभौत परत को कहा जाता है जो उपग्रहों के तटस्थ संवेदक द्वारा निकाले गए डेटा के आधार पर निर्धारित किया गया है। मैंटल धरती के सीमांतर ऊपरी परतों से नीचे फैला हुआ होता है।
भीतरी मैंटल उस विस्तृत क्षेत्र को जो धरती के ऊपरी परत से शुरू होता है, से लेकर केंद्र तक फैला हुआ होता है। भीतरी मैंटल ऊपरी मैंटल से थोड़ा कम तापमान वाला होता है, और इसमें धातुओं और अन्य उपादानों के बहुत अधिक मात्रा में उपस्थित होने की संभावना होती है। भीतरी मैंटल में बहुत अधिक दाब भी होता है जो धरती के उपरी परत से बहुत अधिक होता है।
भीतरी मैंटल में दृश्यमान समस्याओं में से एक वैकल्पिक वर्गीकरण का मुद्दा है, जो इसके भिन्न-भिन्न विभाजनों के आधार पर उसे विभिन्न तरीकों से वर्गीकरण करता है।
(6) कलँगी (Panache)
कलँगी या पैनाश एक उच्च और विशाल झाड़ी होती है, जो अक्सर उच्च तटीय वायुमंडलों में देखी जाती है। यह झाड़ी अक्सर समुद्री तूफानों या तेज हवाओं के समय देखी जाती है। इन झाड़ियों के ऊपर बिना बादलों वाला आसमान और बहुत तेज हवाओं की उपस्थिति होती है।
कलँगी की ऊँचाई कुछ समुद्री तूफानों के दौरान कुछ हजार मीटर तक हो सकती है। यह झाड़ी उपग्रह संचार तंत्रों के लिए एक बड़ी चुनौती पैदा करती है, क्योंकि उन्हें उच्च तटीय वायुमंडल में स्थापित किया जाना होता है। उन्हें सामान्य तरीके से स्थापित करने से पहले, उनके विस्तार और ऊँचाई के आधार पर उन्हें विभिन्न रोजगारों और उद्योगों के लिए आकार और ऊर्जा की आपूर्ति के आधार पर मॉडल किया जाता है।
(7) बाह्य क्रोड
बाह्य क्रोड एक ऐसी शीर्षक होता है जिसे विज्ञान के कुछ क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है। इसे समझने से पहले हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि क्रोड क्या होता है।
क्रोड एक भारतीय संख्या पद्धति होती है जो कि लाख (100,000) के बराबर होती है। यदि हम इसे अंग्रेजी में लिखना चाहें तो यह करोड़ (crore) के नाम से जाना जाता है।
बाह्य क्रोड इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका उपयोग वहां किया जाता है जहाँ हम बाहरी खागोल और ब्रह्मांड से संबंधित मापनों के लिए इस्तेमाल करते हैं। जैसे कि अंतरिक्ष अनुसंधान, खगोल भूगोल और ब्रह्मांडीय ज्ञान आदि।
इसलिए, बाह्य क्रोड एक मात्र शीर्षक नहीं है, बल्कि यह एक संख्यात्मक शीर्षक है जो विज्ञान के कुछ क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है।
(8) आंतरिक क्रोड
आंतरिक क्रोड भी एक भारतीय संख्या पद्धति है, जो कि एक करोड़ (10 मिलियन) के बराबर होती है। इसे अंग्रेजी में भी "ten million" या "1 crore" के रूप में जाना जाता है। इसे आंतरिक क्रोड कहा जाता है क्योंकि इसका उपयोग भारतीय मूल के लोगों के लिए आर्थिक आंकड़ों के मापन के लिए किया जाता है।
आंतरिक क्रोड का उपयोग भारत में बड़ी मात्रा में धन की संख्यात्मक रूपांतरण में किया जाता है। इसे अक्सर बैंकों, आर्थिक संस्थाओं और सरकारी संस्थाओं में उपयोग किया जाता है। यह उन आंकड़ों को मापने के लिए भी उपयोग किया जाता है जो संख्यात्मक ढंग से अधिक हों, जैसे कि जनसंख्या और आय।
इसलिए, आंतरिक क्रोड भारत के लोगों के लिए अहम रूप से होता है, जबकि बाहरी क्रोड विज्ञान और गणित संबंधित क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है।
(9) Cellule de convection ( सेल्यूल डी संवहन )
सेल्यूल डी संवहन (Cellule de convection) एक भौतिकीय प्रक्रिया है जो विभिन्न पृथ्वी के तत्वों में गतिशीलता को बताती है। यह समुद्री तटों, नदी उद्गम स्थलों और पर्वतमालाओं के रूप में विभिन्न पृथ्वी के भौतिक संरचनाओं के बीच होता है।
जब किसी क्षेत्र में एक ऊष्मीय उत्सर्जन होता है, तो उस स्थान से ऊष्मा कम होती है और वहां से ठंडी ऊष्मा के वायु अधिक मात्रा में खिंचा जाता है। यह ठंडी ऊष्मा ऊपर उठती है और ऊष्मीय उत्सर्जन के स्थान पर ठहरती है। इस प्रक्रिया को सेल्यूल डी संवहन कहा जाता है।
जब यह समुद्री तटों, नदी उद्गम स्थलों और पर्वतमालाओं के रूप में विभिन्न पृथ्वी के भौतिक संरचनाओं के बीच होता है, तो यह अलग-अलग तत्वों के बीच गतिशीलता को बताता है जो पृथ्वी के अंदर होती हैं।
(10) लिथोस्फीयर
लिथोस्फीयर (Lithosphere) पृथ्वी का उपरोक्त समुदाय है जो उसकी त्वचा से ऊपर वाला भाग होता है। इसमें उपस्थित मूल तत्व धातु और अवधारणात्मक तत्व होते हैं। धातुओं में सबसे अधिक संख्या में सिलिका होता है जो सिलिकेट मिनरल्स नामक रेखागणित मिश्रणों के रूप में पाया जाता है।
लिथोस्फीयर में पृथ्वी का आंतरिक ऊष्मीय गुदावरण होता है जो लगभग 100 किलोमीटर गहराई तक होता है। इसके नीचे अस्थिर मंडल (आस्थापन मंडल) होता है जो तापमान के संबंध में ऊपर और नीचे जाने वाली गतिशीलता के कारण अस्थिर रहता है। लिथोस्फीयर में धरती की धातु संरचना, जिसे बातमी तंत्र कहा जाता है, को उसकी प्रकृति तय करती है। लिथोस्फीयर धरती की कुछ जगहों पर बट्टी बुझाने की प्रक्रिया में भी शामिल होता है जो भूमध्यसागर के कुछ भागों में होता है।
(11) अस्थेनोस्फियर ( Asthénosphère )
अस्थेनोस्फियर धरती की उपरी आवरणीय मंडल होती है जो लिथोस्फीयर के नीचे स्थित होती है। यह धरती का उपग्रहण करने वाली पृथ्वीय त्वचा के नीचे तथा मोहो वर्ग से लगभग 80 किलोमीटर तक की गहराई में स्थित होती है।
अस्थेनोस्फियर में मानव द्वारा अनुमानित किए गए तापीय मंच शीघ्रता से फ्लोटिंग प्लेट के बीच त्वरण और दक्षता को संभव बनाते हैं। यह त्वचा अपेक्षाकृत अधिक घनी होती है जिससे इसकी तापमान तथा दबाव कम होते हैं जो प्लेट टेक्टोनिक्स के क्षेत्र में अहम तत्व होते हैं। अस्थेनोस्फियर के मौलिक रूप से उच्च तापमान तथा दबाव उसके संरचनात्मक विशिष्टताओं का कारण हैं जो इसकी विशेषताओं के साथ जुड़े होते हैं।
(12) गुटेनबर्ग असातत्य
गुटेनबर्ग अस्तित्व (Gutenberg Discontinuity) धरती की अंतःस्थलीय संरचनाओं में से एक होती है। यह उपग्रहणीय मंडल (इन्फ्रासाउंड वेल मंडल) तथा बाह्य मंडल (सीस्मिक मंडल) के बीच की सीमा होती है। यह सीमा धरती के कुछ हजार किलोमीटर नीचे स्थित होती है।
गुटेनबर्ग अस्तित्व वह सीमा होती है जहां संरचनात्मक विशेषताओं जैसे तापमान, घनत्व, और संश्लेषण आदि के कारण धरती के बाह्य मंडल और उपग्रहणीय मंडल के बीच बड़ी मात्रा में अंतर होता है। इस सीमा के नीचे भूमि के बहुत सारे भागों में सीधे पानी होता है जो सुधार के लिए उपयोगी होता है।
गुटेनबर्ग अस्तित्व सीमा की खोज एवरेस्ट और वेलेस्ली ने 1909 ईसा पूर्व में की थी।
(13) मोहोरोविकिक असातत्य
मोहोरोविकिक अस्तित्व (Mohorovicic Discontinuity) धरती की अंतःस्थलीय संरचनाओं में से एक होती है। यह उपग्रहणीय मंडल तथा भूमि के बीच की सीमा होती है।
मोहोरोविकिक अस्तित्व की सीमा दुनिया भर में लगभग 35-70 किलोमीटर गहराई पर स्थित होती है। इस सीमा के ऊपर बने भूमि का संरचनात्मक विशेषताओं में बतौर महत्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि इसमें संश्लेषण आधारित विशेषताएं नहीं होती हैं।
मोहोरोविकिक अस्तित्व की खोज और नामकरण क्रॉटो ब्रिनियोल (Croato Briniol) ने 1909 ईसा पूर्व में की थी। इसको अपने नाम पर जोसिप मोहोरोविकिक (Josip Mohorovicic), एक क्रोएशियाई भौतिकविद् ने दिया था।
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