अरब राष्ट्रवाद Arab Nationalism
अरब राष्ट्रवाद
"अरब राष्ट्रवाद" एक व्यापक और उल्लेखनीय धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आन्दोलन है, जो अरब देशों के एक विशाल समूह को समाविष्ट करता है। इसे अक्सर "इस्लामी राष्ट्रवाद" के रूप में भी जाना जाता है।
इस आंदोलन के पीछे की मुख्य विचारधारा है कि इस्लाम एक राजनीतिक, सामाजिक और संस्कृतिक सिद्धांत है, जो अरब दुनिया को एकजुट बनाने के लिए उनकी एकता और शक्ति का विकास करता है। इसके अनुयायी लोगों का मानना है कि अरब दुनिया को पूरी तरह से इस्लामी शासन के तहत लाना चाहिए और इस्लामी संस्कृति और अरब संस्कृति को अधिक प्रभावशाली बनाना चाहिए।
अरब राष्ट्रवाद |
इस आंदोलन का प्रभाव अरब दुनिया में व्यापक है और यह धार्मिक उत्सवों, सामाजिक आंदोलनों, नेतृत्व और राजनीतिक दलों के माध्यम से दर्शाया जाता है।
अरब राष्ट्रवाद की उत्पत्ति
अरब राष्ट्रवाद की उत्पत्ति 20वीं सदी के आरंभिक दशक से शुरू हुई। इस समय पूर्वी अरबी देशों में उत्पन्न हुए विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलावों ने अरब राष्ट्रवाद के उद्भव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसकी शुरुआत 1916 में ब्रिटिश विदेश मंत्रालय के अधिकारी टी.ई. लॉरेंस द्वारा आरब जगत को एक संघर्ष से निकालने और एक संयुक्त राज्य के रूप में संगठित करने की सोच के विकास से हुई। इसके बाद 1930 और 1940 के दशकों में अरबी जनता ने इस संघर्ष को आगे बढ़ाया।
1945 में लेबनान के समुद्र तट पर स्थित अरब शोषण के खिलाफ अरब लीग की शुरुआत हुई, जिसके बाद अरब राष्ट्रवाद का आंदोलन मजबूत हो गया। इसके बाद इस आंदोलन के नेतृत्व में अनेक अरब देशों ने अपनी स्वतंत्रता अरब राष्ट्रवाद के नाम से प्राप्त की।
अरब राष्ट्रवाद का विकास
अरब राष्ट्रवाद का विकास विभिन्न आंदोलनों और संघर्षों के माध्यम से हुआ। इसकी शुरुआत 1916 में ब्रिटिश विदेश मंत्रालय के अधिकारी टी.ई. लॉरेंस द्वारा आरब जगत को एक संघर्ष से निकालने और एक संयुक्त राज्य के रूप में संगठित करने की सोच के विकास से हुई।
इसके बाद 1930 और 1940 के दशकों में अरबी जनता ने इस संघर्ष को आगे बढ़ाया। 1945 में लेबनान के समुद्र तट पर स्थित अरब शोषण के खिलाफ अरब लीग की शुरुआत हुई, जिसके बाद अरब राष्ट्रवाद का आंदोलन मजबूत हो गया।
इसके बाद इस आंदोलन के नेतृत्व में अनेक अरब देशों ने अपनी स्वतंत्रता अरब राष्ट्रवाद के नाम से प्राप्त की। 1948 में इज़राइल के गठन के बाद से इस आंदोलन की जंग नेतृत्व वाले अरब देशों के बीच जारी रही।
पैन-इस्लामवाद के लिए मोड़
पैन-इस्लामवाद एक आंदोलन है जो इस्लाम धर्म के नाम पर एक मिश्रण है, जिसमें समाजवादी, अन्तर्राष्ट्रीयवादी, अंतर्जातीय एवं इस्लामी तत्व शामिल हैं। यह आंदोलन इस्लामिक देशों के बीच एक एकीकरण की मांग करता है।
पैन-इस्लामवाद की स्थापना 1920 के दशक में हुई थी जब तुर्की साम्राज्य के खत्म होने के बाद विभिन्न इस्लामिक देशों में एक आंदोलन की आवश्यकता महसूस की गई।
यह आंदोलन समाजवादी और इस्लामी तत्वों के संयोजन के रूप में विकसित हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य था इस्लामिक देशों के बीच सहयोग का स्थापना, दक्षिण-पश्चिम एशिया की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई का समर्थन और इस्लाम धर्म के नाम पर एक एकीकरण की तैयारी करना था।
हालांकि, इस आंदोलन के अनुयायी और नेतृत्व विभिन्न तरह के थे और इसके अंतर्गत धार्मिक तत्वों के भी विभिन्न प्रकार के अभेद हुए।
अरब राष्ट्रवाद का पतन
अरब राष्ट्रवाद का पतन अधिकांश तौर पर 1960 के दशक में शुरू हुए अरब-इजरायल संघर्ष के कारण हुआ। इस संघर्ष में अरब देशों ने इजरायल के विरुद्ध एक संघर्ष की शुरुआत की जिसमें जब अरब देशों ने इजरायल को आक्रमण करने का प्रयास किया, तब इजरायल ने उत्तर दिया और इससे संघर्ष शुरू हो गया।
अरब देशों के बीच विवाद का मुख्य कारण इजरायल का गठन था। इसके समय में इस्लामिक राष्ट्रवाद के आंदोलन के नेतृत्व नेताओं की एक श्रृंखला ने इस्लाम धर्म के नाम पर इस संघर्ष में अधिक समर्थन जुटाया।
इस अवस्था में, अरब देशों के बीच भेदभाव तेज़ हो गया और इस्लामिक राष्ट्रवाद का समर्थन भी घटने लगा। इसके अलावा, सैय्यद कुतुब, नसेर, गमाल अब्दुल नसेर जैसे नेता भी विवादों में फंस गए थे और अरब राष्ट्रवाद के नेतृत्व की जानकारी उनके नियंत्रण से बाहर चली गई। इससे अरब राष्ट्रवाद का पतन हो गया।
अरब एकीकरण
अरब एकीकरण के लिए कई कारण थे, जो मुख्य रूप से समाज, संस्कृति और अर्थव्यवस्था से जुड़े थे।
एक अहम कारण था इस्लाम धर्म के संस्थापक प्रवर्तक हजरत मुहम्मद के उदय से पहले अरब में अनेक जातियों और कबीलों के अन्तर्गत समाज था। हजरत मुहम्मद के उदय के बाद, अरब में एक एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई जिससे अरब में समाज और संस्कृति का एक संयुक्त रूप बना। इसलिए, इस्लाम धर्म अरब के एकीकरण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
दूसरा कारण था अरब में अरबी भाषा का विकास जो अरब के एकीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे लोगों के बीच संचार में बढ़ोतरी हुई और उन्हें अपनी भाषा में संदेशों का अधिक अच्छी तरह से समझने में सहायता मिली।
तीसरा कारण था अरब में अर्थव्यवस्था का विकास जो अरब के एकीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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